महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी अनिवार्य करने का फैसला वापस लिया, शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया नया रुख
- MimTimes मिम टाइम्स م ٹائمز
- Apr 22
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22 April 2025
मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने पहली कक्षा से हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने के फैसले पर व्यापक विरोध के बाद फिलहाल यह निर्णय वापस ले लिया है। राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट किया कि हिंदी भाषा को लेकर जो सरकारी निर्णय जारी किया गया था, उसमें 'अनिवार्य' शब्द का उपयोग किया गया था, लेकिन अब उस पर रोक लगा दी गई है। उन्होंने कहा कि जल्द ही एक नया और संशोधित सरकारी निर्णय जारी किया जाएगा।
दादा भुसे ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भाषाओं को लेकर तीन-भाषा फार्मूला दिया गया है, लेकिन केंद्र सरकार ने किसी भी राज्य पर कोई भाषा अनिवार्य नहीं की है। उन्होंने कहा कि राज्य की मार्गदर्शक समिति ने तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अपनाने का सुझाव दिया था, लेकिन अब इस पर पुनर्विचार किया जा रहा है।
मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) प्रमुख राज ठाकरे ने इस फैसले का तीखा विरोध करते हुए कहा था, "हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं," और राज्य में केवल मराठी को अनिवार्य करने की मांग की थी। मनसे कार्यकर्ताओं ने इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए जीआर की प्रतियाँ फाड़ दीं, जिसके बाद सरकार को कदम पीछे हटाना पड़ा।
शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि जो छात्र हिंदी सीखना चाहते हैं, उनके लिए यह एक वैकल्पिक विषय के रूप में उपलब्ध रहेगा, लेकिन किसी पर दबाव नहीं डाला जाएगा।
वहीं, राज्य मार्गदर्शक समिति के वरिष्ठ सदस्य और शैक्षणिक विशेषज्ञ रमेश पांसे ने भी इस निर्णय की आलोचना की और पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य बनाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि राज्य की शैक्षणिक नीति में किसी भी प्रकार की जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए।
दादा भुसे ने यह भी बताया कि मराठी भाषा सभी स्कूलों में अनिवार्य है, चाहे वे अंग्रेजी माध्यम के हों या किसी अन्य भाषा के। इसके अतिरिक्त, सरकार विभिन्न क्षेत्रों में नए आवासीय स्कूल स्थापित करेगी, जहाँ खेल, संस्कृति और अन्य कौशलों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
उन्होंने यह भी घोषणा की कि 10,500 नए शिक्षकों की भर्ती की जाएगी, और यह प्रक्रिया "पवित्र पोर्टल" के माध्यम से पूरी होगी। साथ ही, शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक जिम्मेदारियों से मुक्त करने की दिशा में भी सरकार प्रयास कर रही है।
राज्य में छात्रों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की योजना है, और बीमार बच्चों के लिए बड़े सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधा दी जाएगी।
दादा भुसे ने कहा कि “हमने हिंदी को केवल इसलिए चुना था क्योंकि इसका लिपि देवनागरी है, जो मराठी से मिलती-जुलती है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि नए सरकारी निर्णय के माध्यम से हिंदी को अनिवार्य बनाने की धारणा समाप्त की जाएगी।
यह नया रुख सरकार के जनता के दबाव के सामने झुकने का परिणाम माना जा रहा है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में राज्य की नई शैक्षणिक संरचना किस दिशा में जाती है।
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